बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

गरीबी से ज्यादा प्यार में हो जाते हैं फना

दिल टूटने का दर्द क्या होता है, यह कोई नाकाम प्रेमी ही बता सकता है। लेकिन दिल टूटने का दर्द गरीबी और बेरोजगारी पर हावी है। सरकारी आंकड़े यह बात कह रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2008 की रिपोर्ट के मुताबिक नाकाम प्यार में दिल टूटने के चलते देश में प्रतिदिन 10 लोगों ने आत्महत्या की, जबकि गरीबी और बेरोजगारी के कारण आत्महत्या करने वालों का औसत क्रमश: 8 और 6 व्यक्ति प्रतिदिन रहा। 'एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड्स इन इंडिया 2008' शीर्षक वाली रिपोर्ट के मुताबिक 2008 में 3,774 लोगों ने प्यार के नाकाम रहने पर आत्महत्याएं की जिनमें से 1,912 महिलाएं और 1,862 पुरूष थे। वहीं गरीबी के चलते 3006 और बेरोजगारी तथा दिवालिया होने के चलते क्रमश: 2,080 और 2,970 लोगों ने आत्महत्याएं कीं।
राज्यवार स्थिति देखें तो 2008 में 792 आत्महत्या के मामलों के साथ पश्चिम बंगाल का स्थान सबसे ऊपर रहा। इसके बाद दिल टूटने के चलते तमिलनाडु में 549, असम में 396, आंध्र प्रदेश में 263 और उड़ीसा में 212 मामले दर्ज किए गए। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में इस तरह के महज 63 मामले देखे गए। 2008 में आत्महत्या के कुल एक लाख 25 हजार 17 मामले हुए जिनमें 45.7 फीसदी लोगों ने घरेलू समस्याओं और बीमारी के चलते यह कदम उठाया। पारिवारिक समस्याओं के चलते 29,777 और 27,410 लोगों ने बीमारी के चलते आत्महत्या को गले लगाया। वहीं दहेज मामलों के चलते 3,028 लोगों ने आत्महत्याएं कीं।

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